गया | पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आज ही के दिन माता सीता धरती से प्रकट हुई थीं, इसलिए इस दिन को सीता जयंती, सीता नवमी के रूप में सम्पूर्ण भारत वर्ष में मनाई जाती है। आज सीता जयंती के अवसर पर गया के स्थानीय विश्व प्रसिद्ध सीता कुंड मंदिर परिसर में माता सीता की जयंती मनाई गई।
इस अवसर पर उपस्थित बिहार प्रदेश कॉंग्रेस कमिटी के प्रदेश प्रतिनिधि सह प्रवक्ता प्रो विजय कुमार मिट्ठू ने कहा कि बाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार मिथिला में भयानक सूखा पडा था जिस वज़ह से राजा जनक बहुत परेशान हो गए थे, इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए उन्हें एक ऋषि ने यज्ञ करने और खुद धरती पर हल चलाने का सुझाव दिया । राजा जनक ने अपने प्रजा के लिए यज्ञ करवाये और फिर धरती पर हल चलाने लगे, तभी उनका हल धरती के अंदर कोई वस्तु से टकराया, तब मिट्टी हटाने के बाद सोने के घड़ा में मिट्टी से लिपटी एक सुन्दर कन्या मिली, जैसे ही राजा जनक उस कन्या को अपने हाथ में उठाया, वैसे ही तेज वारिस शुरू हो गई, राजा जनक ने उस कन्या का नाम सीता रखा और उसे अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार कर लिया।
डॉ मदन कुमार सिन्हा ने कहा कि सीता जयंती का त्योहार रामनवमी के लगभग एक महीने बाद मनाया जाता है, इस दुर्लभ अवसर पर देवी माँ सीता के साथ भगवान राम का भी पूजा करना श्रेष्ठ है। भगवान श्री राम को विष्णु का रूप और माता सीता को लक्ष्मी का स्वरूप कहा जाता है।
इस अवसर पर उपस्थित प्रद्युम्न दुबे, दामोदर गोस्वामी, विपिन बिहारी सिन्हा, कुंदन कुमार, धर्म भवानी सिंह, दीपू लाल भैया, रामानंद गिरी, शिवदास पूरी, आदि ने कहा कि मोदी सरकार की अनदेखी के कारण गया में विश्व प्रसिद्ध सीता कुंड मंदिर होने के बाद भी इसे देश के रामायण सर्किट से नहीं जोड़ा गया है, जिसे अविलंब जोड़ने की आवश्यकता है।
बिहार राज्य के रामायण से जुड़े स्थानों जैसे सीतामढ़ी, दरभंगा, बक्सर को रामायण सर्किट से जोड़ा गया परंतु गया में विश्व प्रसिद्ध सीता कुंड मंदिर होने के बाद भी नहीं जुटना दुर्भाग्यपूर्ण है।