अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी व्यापार नीति में बड़ा बदलाव करते हुए रेसिप्रोकल टैरिफ (प्रतिस्पर्धी शुल्क) से कुछ प्रमुख तकनीकी उत्पादों को बाहर करने का फैसला किया है। इस निर्णय के तहत अब स्मार्टफोन, लैपटॉप और सेमीकंडक्टर चिप्स जैसे उत्पादों पर अतिरिक्त आयात शुल्क नहीं लगाया जाएगा।
यह फैसला उस समय आया है जब अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव चरम पर है। हाल ही में ट्रंप प्रशासन ने चीन से आयातित वस्तुओं पर 145% तक का भारी शुल्क लगाने का ऐलान किया था। लेकिन अब इस नए निर्णय से संकेत मिलता है कि ट्रंप प्रशासन टेक कंपनियों के हितों और वैश्विक सप्लाई चेन को लेकर सतर्क हुआ है।
एप्पल समेत कई कंपनियों को राहत
इस नीति में बदलाव से सबसे ज़्यादा फायदा एप्पल, इंटेल, क्वालकॉम और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों को मिलेगा। ये कंपनियां अपने अधिकांश उत्पादों का निर्माण और असेंबलिंग चीन में कराती हैं। अगर इन पर रेसिप्रोकल टैरिफ लागू किया जाता, तो उनके उत्पादों की कीमतें बढ़ जातीं और प्रतिस्पर्धात्मक बाजार में उनकी स्थिति कमजोर हो सकती थी।
रेसिप्रोकल टैरिफ क्या है?
रेसिप्रोकल टैरिफ का तात्पर्य है कि अगर कोई देश अमेरिकी उत्पादों पर अधिक शुल्क लगाता है, तो अमेरिका भी उसी अनुपात में उस देश से आयातित उत्पादों पर शुल्क लगाएगा। यह नीति ट्रंप के 'अमेरिका फर्स्ट' एजेंडे का हिस्सा रही है, जिसका उद्देश्य घरेलू उत्पादकों को बढ़ावा देना और व्यापार घाटा कम करना है।
क्यों लिया गया यह फैसला?
1. टेक इंडस्ट्री का दबाव : एप्पल और अन्य टेक कंपनियों ने चेतावनी दी थी कि अधिक शुल्क से उनके उत्पाद महंगे हो जाएंगे, जिससे बिक्री पर असर पड़ेगा।
2. वैश्विक सप्लाई चेन बाधित होने की आशंका : अमेरिका में तकनीकी उत्पादों की असेंबलिंग के लिए चीन पर अत्यधिक निर्भरता है।
3. आर्थिक नुकसान की चिंता : उच्च टैरिफ से अमेरिकी उपभोक्ताओं पर बोझ बढ़ता और आर्थिक विकास दर धीमी पड़ सकती थी।
भविष्य की राह
हालांकि यह राहत फिलहाल केवल कुछ उत्पादों तक सीमित है, लेकिन यह कदम यह भी दर्शाता है कि अमेरिका अपनी नीतियों में लचीलापन रखने के लिए तैयार है, खासकर तब जब देश की अर्थव्यवस्था और तकनीकी वर्चस्व दांव पर हो।
ट्रंप का यह निर्णय अमेरिकी टेक उद्योग के लिए एक रणनीतिक जीत माना जा रहा है, जो न सिर्फ कंपनियों को राहत देगा बल्कि उपभोक्ताओं को भी महंगे गैजेट्स खरीदने से बचाएगा।