बिहार की चीनी मिलों में नई मिठास? सरकार का बड़ा कदम और उम्मीदों की लहर

Prashant Prakash
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बिहार की बंद पड़ी चीनी मिलें, कभी राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हुआ करती थीं। दशकों से इन मिलों पर ताले लटके हुए हैं, जिससे गन्ना किसान और स्थानीय समुदाय आर्थिक रूप से परेशान हैं। अब, बिहार सरकार ने इन मृतप्रायः इकाइयों में नई जान फूंकने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। गन्ना उद्योग विभाग ने राज्य की दो प्रमुख बंद पड़ी चीनी मिलों - सकरी और रैयाम - की परिसंपत्तियों का पुनर्मूल्यांकन करने का निर्णय लिया है। विधानसभा चुनाव से पहले लिया गया यह फैसला इन मिलों को फिर से शुरू करने की दिशा में एक बड़ा संकेत माना जा रहा है, जिससे क्षेत्र में उम्मीदों की एक नई लहर दौड़ गई है।

सकरी चीनी मिल, जिसे महाराजा दरभंगा कामेश्वर सिंह ने 1933 में स्थापित किया था, एक समय में इस क्षेत्र की प्रगति का प्रतीक थी। दुर्भाग्यवश, यह मिल 1997 से बंद है, जिससे हजारों गन्ना किसानों और श्रमिकों का जीवन प्रभावित हुआ। इसी तरह, 1914 में शुरू हुई रैयाम चीनी मिल भी 1994 से बंद पड़ी है। इन ऐतिहासिक मिलों का बंद होना न केवल औद्योगिक नुकसान है, बल्कि यह उस विरासत का भी क्षरण है जो कभी बिहार की पहचान थी।

सरकार का यह फैसला ऐसे समय में आया है जब गन्ना किसान अपनी उपज को लेकर अनिश्चितता का सामना कर रहे हैं। बंद पड़ी मिलों के कारण उन्हें या तो अपनी फसल औने-पौने दामों पर बेचनी पड़ती है या फिर लंबी दूरी तय कर दूसरी मिलों तक पहुंचना पड़ता है, जिससे उनकी लागत और परेशानी दोनों बढ़ जाती हैं। सकरी और रैयाम चीनी मिलों के पुनर्मूल्यांकन का निर्णय इन किसानों के लिए एक उम्मीद की किरण है कि शायद उन्हें अपनी उपज का सही दाम मिल सकेगा और उनके आर्थिक संकट कुछ हद तक कम हो सकेंगे।

हालांकि, परिसंपत्तियों का पुनर्मूल्यांकन मिलों को दोबारा चालू करने की दिशा में पहला कदम मात्र है। इसके बाद सरकार को इन मिलों को चलाने के लिए निवेशकों को आकर्षित करना होगा, आवश्यक बुनियादी ढांचे को दुरुस्त करना होगा और कुशल कर्मचारियों की भर्ती करनी होगी। यह एक लंबी और चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन सरकार का वर्तमान उत्साह और विधानसभा चुनाव से पहले की सक्रियता यह दर्शाती है कि इस बार कुछ ठोस परिणाम निकलने की संभावना है।

यह भी ध्यान देने योग्य है कि चीनी मिलों को फिर से शुरू करने से न केवल गन्ना किसानों को लाभ होगा, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था भी गति पकड़ेगी। रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे, व्यापारिक गतिविधियां बढ़ेंगी और क्षेत्र में समृद्धि का माहौल बनेगा। इन मिलों के आसपास के छोटे व्यवसायों और व्यापारियों को भी इसका प्रत्यक्ष लाभ मिलेगा।

सकरी और रैयाम चीनी मिलें सिर्फ औद्योगिक इकाइयां नहीं थीं, बल्कि ये उस क्षेत्र की सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान का भी हिस्सा थीं। इन मिलों के फिर से खुलने से न केवल आर्थिक पुनरुत्थान होगा, बल्कि लोगों के बीच एक बार फिर से जुड़ाव और अपनत्व की भावना भी जागेगी।

कुल मिलाकर, बिहार सरकार का बंद पड़ी चीनी मिलों की परिसंपत्तियों का पुनर्मूल्यांकन करने का फैसला एक स्वागत योग्य कदम है। यह गन्ना किसानों और स्थानीय समुदायों के लिए उम्मीद की एक नई सुबह लेकर आया है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार इस दिशा में कितनी तेजी और प्रभावी ढंग से आगे बढ़ती है ताकि इन ऐतिहासिक मिलों में एक बार फिर से मिठास घुल सके और बिहार की अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा मिल सके। यह सिर्फ चीनी मिलों का पुनरुद्धार नहीं होगा, बल्कि यह बिहार के औद्योगिक गौरव को फिर से स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास साबित हो सकता है।

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