जलकुंभी से खुला रोजगार का अवसर, अंतरराष्ट्रीय बाजार में जलकुंभी से बनी वस्तुओं की बढ़ी मांग

Prashant Prakash
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हाजीपुर | जलकुंभी आप किसी भी जलाशय में देख सकते हैं। पहले इसका कोई उपयोग नहीं था।लेकिन हस्त शिल्पकला और जिला प्रशासन, वैशाली की पहल ने इसकी उपयोगिता का नया आयाम दिया है।

वैशाली के जिला पदाधिकारी यशपाल मीणा के निर्देशन और प्रेरणा से प्रेरित होकर भगवानपुर प्रखंड के बीडीओ आनंद मोहन ने भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय के विकास आयुक्त कार्यालय के सहयोग से अनुपयोगी समझे जाने वाले जलकुंभी को हस्तशिल्प कला के माध्यम से इसे उपयोगिता के शिखर तक पहुंचा दिया गया।

बिहार के वैशाली जिले के भगवानपुर प्रखंड के असतपुर सतपुरा ग्राम में गुरु शिष्य प्रशिक्षण कार्यक्रम का आगाज 5 अगस्त को हुआ था।जिलाधिकारी यशपाल मीणा द्वारा इस कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया।इस प्रशिक्षण में 30 महिला को हस्तशिल्प कला के माध्यम से जलकुंभी को पानी से निकालने,उसे सजा कर काटने,सूखने की कला से अवगत कराया गया। 

सूखे हुए डंठल को मशीन के माध्यम से रो मैटेरियल तैयार करने की कला से रु ब रु करा कर उससे अनेक बहुउपयोगी दैनिक उपयोग की वस्तु बनाना सीखाया गया।

जानकारी के अनुसार स्थानीय मार्केट में तो इस वस्तु की कीमत अधिक नहीं है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत अधिक है। इसकी मांग इतनी अधिक है कि हमेशा आउट ऑफ स्टॉक रहा करता है। 

इस प्रशिक्षण का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि बिहार में जलकुंभी से निर्मित सामान के लिए कोई मास्टर ट्रेनर नहीं होने के कारण वेस्ट बंगाल के ग्वालपाड़ा से प्रशिक्षक को बुलाना पड़ा।

बताते चले कि ग्वालपाड़ा से संबंध रखने वाली इंदिरा ब्रह्मा के द्वारा इस प्रशिक्षण को सफलतापूर्वक 30 दिनों तक संचालित किया गया। प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले सभी प्रशिक्षणार्थी का बायोमेट्रिक उपस्थिति हुआ करता था और उन्हें प्रशिक्षण में आने-जाने के लिए ₹300 प्रतिदिन के हिसाब से उनके बैंक खाते में भुगतान किया गया।

मुकेश कुमार, कार्यालय विकास आयुक्त, वस्त्र मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा बताया गया कि यह एक ऐसी योजना है जिससे न केवल स्वरोजगार की प्राप्ति हो सकती है, बल्कि बुढ़ापे का बहुत बड़ा सहारा हो सकता है। जैसे सरकारी कर्मी को पेंशन की राशि दी जाती है, उसी प्रकार इस कार्य में शामिल होने वाले वैसे हस्तशिल्प कलाकार, जिनका चयन राज स्तर पर हो जाता है, उन्हें सरकार द्वारा 60 वर्ष की उम्र प्राप्त होने के बाद ₹7000 प्रतिमाह की दर से उन्हें पेंशन की राशि दी जाती है। 

इतना ही नहीं इस क्षेत्र में अच्छे कार्य करने वाले को भारत सरकार के स्तर से पुरस्कृत भी किया जाता है। जलकुंभी से बने किसी भी सामान के मार्केटिंग के लिए कलाकार को बाजार की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि वस्त्र मंत्रालय, भारत सरकार के कार्यालय विकास आयुक्त द्वारा उसे सामग्री को विभिन्न स्थलों में लगाकर रखा जाता है और उसे विपणन कर उसे जो राशि प्राप्त होती है उस राशि को उसे कलाकार के खाते में डाल दिया जाता है।

उनके द्वारा बताया गया कि यह ऐसी योजना है, जिससे न केवल स्वरोजगार का अवसर उत्पन्न होगा, बल्कि आत्मनिर्भर बनने का भी मौका प्राप्त होगा।

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