पटना | कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बिहार दौरे के दौरान पटना में उस समय हंगामा हो गया, जब उनकी बैठक के दौरान एक युवक वक्फ बिल के समर्थन से जुड़ा पोस्टर लेकर पहुंचा। इस घटना ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है और कांग्रेस की अंदरूनी स्थिति पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।
राहुल गांधी इन दिनों भारत जोड़ो यात्रा के अगले चरण या चुनावी रणनीति के तहत बिहार के दौरे पर हैं। पटना स्थित सदाकत आश्रम में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ बैठक चल रही थी, तभी एक युवक हाथ में पोस्टर लिए हुए अचानक वहां पहुंचा। पोस्टर पर लिखा था— "वक्फ बोर्ड का समर्थन कीजिए राहुल गांधी जी"।
जैसे ही युवक ने पोस्टर दिखाया, कांग्रेस के कुछ नेताओं और कार्यकर्ताओं ने उसे वहां से हटाने की कोशिश की। बात इतनी बढ़ गई कि युवक को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा गया और आश्रम परिसर से जबरन बाहर कर दिया गया। घटना के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुके हैं, जिसमें युवक को बचने की कोशिश करते और कार्यकर्ताओं को उसे पीटते देखा जा सकता है।
इस पूरे घटनाक्रम के बाद कांग्रेस पार्टी की कार्यप्रणाली और असहमति के प्रति उसकी असहिष्णुता पर सवाल उठने लगे हैं। विपक्षी दलों ने भी इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस को घेरा है। भाजपा नेता ने ट्वीट कर कहा— *"राहुल गांधी असहिष्णुता पर भाषण देते हैं, लेकिन उनकी बैठक में असहमति जताने वाले की पिटाई होती है। यही है कांग्रेस का असली चेहरा!"*
क्या है वक्फ बोर्ड और वक्फ बिल विवाद?
वक्फ बोर्ड देश भर में मुस्लिम समुदाय की धार्मिक और सामाजिक संपत्तियों की देखरेख करता है। हाल ही में वक्फ से जुड़ी संपत्तियों और अधिकारों को लेकर कुछ विवादास्पद प्रावधानों के कारण वक्फ बिल चर्चा में है। कुछ वर्गों का मानना है कि इस बिल के जरिए धार्मिक स्वतंत्रता को बढ़ावा मिलेगा, वहीं कई लोग इसे भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक मानते हैं।
कांग्रेस की चुप्पी पर सवाल
हैरानी की बात यह है कि इतनी बड़ी घटना के बावजूद कांग्रेस पार्टी की ओर से अब तक कोई औपचारिक बयान सामने नहीं आया है। राहुल गांधी ने भी इस मसले पर चुप्पी साध रखी है। इससे यह सवाल उठने लगा है कि क्या कांग्रेस सिर्फ दिखावे की लोकतांत्रिक पार्टी बनकर रह गई है?
निष्कर्ष
पटना की घटना ने एक बार फिर यह दिखा दिया कि राजनीति में विचारों की स्वतंत्रता की बातें केवल भाषणों तक सीमित रह गई हैं। असहमति या अपनी बात रखने की कोशिश करने पर अगर इस तरह की प्रतिक्रिया मिलेगी, तो आम जनता का नेताओं से विश्वास उठना स्वाभाविक है।