भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच अब पहले से अधिक व्यापक होती जा रही है। सरकार ने अब एक ऐसी नीति बनाई है जिससे आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोग निजी अस्पतालों में भी मुफ्त इलाज करवा सकते हैं। खास बात यह है कि ये अस्पताल पूरी तरह से निजी होते हुए भी चैरिटेबल श्रेणी में आते हैं और इन्हें सरकारी जमीन पर निर्माण की अनुमति मिली होती है। इसके बदले में इन अस्पतालों को निर्धन और जरूरतमंद मरीजों को मुफ्त या रियायती दरों पर इलाज देना होता है।
क्या है यह नीति?
सरकार की इस नीति के तहत, जो भी निजी अस्पताल सरकारी जमीन पर बने हैं या किसी तरह से सरकारी सब्सिडी या रियायत प्राप्त कर रहे हैं, उन्हें एक निर्धारित प्रतिशत मरीजों का मुफ्त इलाज करना होता है। यह नियम देशभर में लागू है और समय-समय पर राज्य सरकारें भी इस पर निगरानी रखती हैं।
किन्हें मिल सकता है लाभ?
इस योजना का लाभ वे सभी लोग उठा सकते हैं जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं। इसके लिए मरीज को निम्नलिखित दस्तावेज़ दिखाने होते हैं:
- राशन कार्ड (गरीबी रेखा के नीचे होने का प्रमाण)
- इनकम सर्टिफिकेट
- अन्य पहचान पत्र (जैसे आधार कार्ड)
यदि मरीज इन दस्तावेजों के साथ अस्पताल में संपर्क करता है और अस्पताल चैरिटेबल श्रेणी में आता है, तो उसे इलाज के लिए भुगतान नहीं करना होगा या बहुत ही नाममात्र राशि देनी होगी।
किन बीमारियों के इलाज होते हैं मुफ्त?
इन चैरिटेबल निजी अस्पतालों में आम बीमारियों के साथ-साथ कई गंभीर और महंगे इलाज जैसे कि:
- सर्जरी
- डायलिसिस
- कैंसर का इलाज
- कार्डियक समस्याएं
- डिलिवरी व स्त्री रोग संबंधी उपचार
भी मुफ्त या रियायती दरों पर कराए जा सकते हैं।
कैसे पता करें कि कौन-सा अस्पताल इस योजना में शामिल है?
- राज्य या केंद्र सरकार की स्वास्थ्य विभाग की वेबसाइट पर संबंधित सूची उपलब्ध होती है।
- RTI के माध्यम से जानकारी ली जा सकती है।
- सीधे अस्पताल में जाकर प्रशासन से पूछा जा सकता है कि क्या वह चैरिटेबल श्रेणी में आता है या नहीं।
देश में स्वास्थ्य सेवा को हर नागरिक तक पहुंचाने की दिशा में यह एक अहम कदम है। यदि सही जानकारी हो और लोग अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हों, तो निजी अस्पतालों में भी मुफ्त इलाज संभव है। ऐसे में जरूरत है कि इस योजना की जानकारी हर गरीब और जरूरतमंद व्यक्ति तक पहुंचे, ताकि वे भी स्वस्थ और सम्मानजनक जीवन जी सकें।