बिहार में इन दिनों एक चौंकाने वाली रिपोर्ट को लेकर खासा बवाल मचा हुआ है। समेकित बाल विकास परियोजना (ICDS) की हाल ही में आयोजित राज्यस्तरीय समीक्षा बैठक में यह सामने आया कि राज्य के कई जिलों में बच्चों की लंबाई औसतन कम दर्ज की गई है। यह रिपोर्ट सामने आते ही स्वास्थ्य और पोषण से जुड़े विभागों में हड़कंप मच गया, और लोगों में चिंता की लहर दौड़ गई।
इस मसले की गंभीरता को देखते हुए समाज कल्याण विभाग ने मामले की गहन जांच के आदेश दिए। जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ी, वैसे-वैसे इसकी परतें खुलती गईं। और आखिरकार एक अहम सच्चाई सामने आई—बच्चों की लंबाई वास्तव में घटी नहीं थी, बल्कि मापने की प्रक्रिया में भारी लापरवाही हुई थी।
जांच में सामने आई लापरवाही
समाज कल्याण विभाग की टीम ने जब आंगनबाड़ी केंद्रों का दौरा किया और दस्तावेजों की जांच की, तो पाया गया कि अधिकांश सेविकाओं ने बच्चों की लंबाई मापने के मानकों का पालन नहीं किया। कई जगहों पर लंबाई मापने वाले उपकरण जैसे इंफैंटोमीटर और स्टैडियोमीटर या तो उपलब्ध नहीं थे, या उनका सही उपयोग नहीं किया गया।
कई सेविकाओं ने अनुमान के आधार पर या पुराने रिकॉर्ड के हिसाब से ही बच्चों की लंबाई भर दी, जिससे डेटा में गड़बड़ी हो गई। इस वजह से रिपोर्ट में यह भ्रम उत्पन्न हुआ कि बच्चों की लंबाई औसतन घट गई है।
सरकार की सख्ती और सुधारात्मक कदम
जैसे ही यह लापरवाही सामने आई, समाज कल्याण विभाग ने सभी जिलों को निर्देश दिए कि बच्चों की लंबाई और वजन की माप मानक प्रक्रिया के अनुसार ही की जाए। साथ ही, सभी आंगनबाड़ी सेविकाओं को विशेष प्रशिक्षण देने की योजना बनाई जा रही है ताकि भविष्य में इस तरह की गड़बड़ियों से बचा जा सके।
विभाग ने यह भी सुनिश्चित करने का निर्णय लिया है कि सभी केंद्रों पर मापन उपकरणों की उपलब्धता हो और समय-समय पर निरीक्षण कर उनकी कार्यप्रणाली की समीक्षा की जाए।
जनता में भ्रम और अफवाहें
इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद सोशल मीडिया पर अफवाहों का बाजार गर्म हो गया था। कुछ लोगों ने इसे बच्चों के पोषण में कमी और सरकारी योजनाओं की विफलता से जोड़ दिया। हालांकि अब सच्चाई सामने आने के बाद स्थिति स्पष्ट हो गई है।
निष्कर्ष
बिहार में बच्चों की लंबाई कम होने की खबर ने भले ही कुछ दिनों के लिए चिंता बढ़ा दी हो, लेकिन समय रहते हुई जांच ने यह साफ कर दिया कि यह सिर्फ मापने की लापरवाही का परिणाम था। अब यह जरूरी है कि ऐसी घटनाओं से सबक लेकर भविष्य में बाल विकास से जुड़ी योजनाओं के क्रियान्वयन में पूरी पारदर्शिता और सटीकता बरती जाए।