बिहार की नई सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में एक दिलचस्प विरोधाभास देखने को मिला। मंच पर परिवारवाद के खिलाफ कड़े बयान सुनाई दिए, लेकिन उसी मंच से शपथ लेने वाले कई मंत्री स्वयं राजनीतिक वंशवाद की उपज थे। सत्ता गलियारे में इस विरोधाभास पर खूब चर्चा रही।
मंत्रिमंडल में शामिल नेताओं ने अपने राजनीतिक परिचय में जिस 'वंशीय पहचान' को उजागर किया, उसने एक बार फिर सवाल खड़ा कर दिया—
क्या बिहार में परिवारवाद सचमुच खत्म होगा या यह केवल भाषणों तक सीमित मुद्दा है?
🔹 सम्राट चौधरी
पूर्व मंत्री शकुनी चौधरी और पूर्व विधायक स्व. पार्वती देवी के पुत्र।
बिहार राजनीति का पुराना स्थापित परिवार, जिसका प्रभाव आज भी कायम है।
🔹 संतोष सुमन मांझी
पूर्व मुख्यमंत्री एवं वर्तमान केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी के पुत्र, वर्तमान विधायक ज्योति मांझी के दामाद और विधायक दीपा मांझी के पति।
एक ही परिवार से मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक और अब मंत्री—राजनीतिक विरासत का सबसे प्रभावशाली उदाहरण।
🔹 दीपक प्रकाश
पूर्व केंद्रीय मंत्री व राज्यसभा सांसद उपेंद्र कुशवाहा और विधायक स्नेहलता के पुत्र।
चुनाव मैदान से अनुपस्थित, फिर भी सीधे मंत्री पद—वंशीय राजनीतिक ताकत का प्रभाव साफ दिखा।
🔹 अशोक चौधरी
पूर्व मंत्री महावीर चौधरी के पुत्र।
सत्ता में परंपरागत प्रभाव फिर से स्थापित।
🔹 नितिन नबीन
पूर्व विधायक नवीन किशोर सिन्हा के पुत्र।
लगातार दो पीढ़ियों से सत्ता की निरंतरता।
🔹 रमा निषाद
पूर्व केंद्रीय मंत्री कैप्टन जय नारायण निषाद की पुत्रवधू और पूर्व सांसद अजय निषाद की पत्नी।
निषाद परिवार की राजनीतिक विरासत का विस्तार।
🔹 श्रेयसी सिंह
पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह और पूर्व सांसद पुतुल कुमारी की पुत्री।
खेल और राजनीति—दोनों में प्रभावी परिवार का प्रतिनिधित्व।
🔹 विजय चौधरी
पूर्व विधायक जगदीश प्रसाद चौधरी के पुत्र।
🔹 सुनील कुमार
पूर्व मंत्री चंद्रिका राम के पुत्र और पूर्व विधायक अनिल कुमार के भाई।
बड़ी घोषणा : परिवारवाद के खिलाफ शपथ
इन सभी नेताओं ने एक सुर में कहा—
“ईश्वर की शपथ लेता हूं कि मैं परिवारवाद के घोर विरोधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मार्गदर्शन में बिहार से परिवारवाद समाप्त करूंगा।”
लेकिन मंच पर मौजूद लोग भी यह विरोधाभास देखकर मुस्कुराए बिना नहीं रह सके।
सवाल वही : क्या बिहार में खत्म होगा परिवारवाद?
मंत्रिमंडल में नई पीढ़ी के चेहरे तो हैं, पर ज्यादातर किसी न किसी राजनीतिक घराने की विरासत से आते हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है—
क्या परिवारवाद खत्म करने की शपथ व्यवहार में भी दिखेगी,
या यह मुद्दा सिर्फ राजनीतिक भाषणों तक सीमित रहेगा?
बिहार की राजनीति में परिवारवाद की जड़ें कितनी गहरी हैं, यह नई सरकार के चेहरे स्पष्ट रूप से दिखा रहे हैं।
