बिहार की राजनीति में एक बार फिर हलचल बढ़ गई है। जन सुराज के संस्थापक और चुनावी रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर (PK) ने बिहार चुनाव में धांधली और गड़बड़ी के बड़े आरोप लगाए हैं। हालांकि उन्होंने साफ कहा कि “सबूत नहीं है”, लेकिन उनके कथनों ने चुनावी प्रक्रिया, सरकार और राजनीतिक दलों पर कई गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं।
🔍 PK के मुख्य आरोप — क्या कहा प्रशांत किशोर ने?
प्रशांत किशोर ने अपने बयान में कई अहम बातें कहीं, जिनमें सबसे प्रमुख यह हैं—
1️⃣ चुनाव में गड़बड़ी, पर कोई ठोस सबूत नहीं
PK ने दावा किया कि बिहार चुनाव में कुछ ऐसा हुआ जो समझ से परे था।
उनके अनुसार :
“कुछ अजेय शक्तियां खेल रही थीं।”
“चुनाव की प्रक्रिया वैसी नहीं रही जैसी दिख रही थी।”
2️⃣ जिन पार्टियों को कोई नहीं जानता था, उन्हें मिले लाखों वोट
PK ने यह भी कहा कि कई ऐसी पार्टियां, जिनका जनाधार या पहचान मुश्किल से थी, उन्हें भी भारी वोट मिले।
वह इसे “चुनावी गणित में अप्राकृतिक उछाल” बता रहे हैं।
3️⃣ आखिरी चरण में NDA सरकार ने बांटे 10-10 हजार रुपये
उनके मुताबिक, चुनाव समाप्ति के ठीक पहले महिलाओं को 10-10 हजार रुपये दिए गए, जिसने मतदान को प्रभावित किया।
यह दावा एक तरह से राजनीतिक लाभ के लिए सरकारी तंत्र के उपयोग की ओर इशारा करता है।
4️⃣ जंगलराज के डर से NDA को मिला वोट
प्रशांत किशोर ने यह भी कहा कि मतदाताओं के मन में जंगलराज की वापसी को लेकर डर था,
इसी कारण उन्होंने NDA को चुना।
यह संकेत है कि चुनाव में भावनात्मक मुद्दे भी बड़ी भूमिका निभा रहे थे।
🗳️ क्या PK का दावा बिहार की चुनावी राजनीति को हिला देगा?
PK के ये बयान केवल किसी नेता का राजनीतिक आरोप नहीं हैं, बल्कि ऐसे शख्स की राय है जिसने—
देश में कई राज्यों के चुनावों में रणनीति तैयार की, चुनावी डेटा और पैटर्न को सबसे ज्यादा गहराई से समझा है और खुद बिहार में 4,000 किमी की जन-सुराज पदयात्रा कर जमीन से जनभावना जानी है।
इसलिए उनके दावों को हल्के में नहीं लिया जा सकता।
⚖️ सबूत नहीं, पर संकेत गंभीर
हालांकि PK खुद स्वीकारते हैं कि गड़बड़ी के प्रमाण उनके पास नहीं हैं, लेकिन उनके ये सवाल चुनाव आयोग, राजनीतिक दलों और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर चर्चा को मजबूर करते हैं।
विशेषज्ञ मानते हैं कि—
यदि ऐसे दावे सामने आते हैं, तो चुनाव प्रणाली पर गहरी जांच और पारदर्शिता की जरूरत है।
प्रशांत किशोर का बयान एक चेतावनी की तरह है—
कि चुनावी प्रक्रिया को मजबूत बनाने और पारदर्शिता सुनिश्चित करने की तत्काल आवश्यकता है।
उनके अनुसार, चुनाव में कुछ ऐसा हुआ जो सामान्य लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के अनुरूप नहीं था।
हालांकि प्रमाण न होने से यह आरोप अभी राजनीतिक बहस की श्रेणी में है,
लेकिन यह चर्चा बिहार की राजनीति का सबसे बड़ा मुद्दा बन सकता है।
