बिहार में विधानसभा चुनाव का माहौल बनते ही महागठबंधन (RJD-Congress-Left) के भीतर अजीबो-गरीब हालात पैदा हो गए हैं। गठबंधन में अब सिर्फ राजद और कांग्रेस के बीच टकराव नहीं, बल्कि राजद के अंदर भी गुटबाज़ी खुलकर सामने आने लगी है।
सूत्रों के मुताबिक, सीट बंटवारे को लेकर महागठबंधन में मतभेद गहराते जा रहे हैं। कांग्रेस ने बिना अंतिम फॉर्मूला तय किए 48 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी, जिससे राजद खेमे में नाराज़गी फैल गई। कई सीटों पर कांग्रेस और राजद दोनों के नेताओं ने एक-दूसरे के खिलाफ तैयारी शुरू कर दी है — जिससे गठबंधन की एकता पर सवाल उठने लगे हैं।
उधर, राजद के भीतर भी असंतोष बढ़ा है। पार्टी के कई पुराने नेताओं को टिकट वितरण में अनदेखा किए जाने की शिकायत है। तेजस्वी यादव की नई टीम और लालू यादव के दौर के वरिष्ठ नेताओं के बीच दूरी बढ़ती जा रही है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि कुछ पुराने चेहरे अब “स्वतंत्र रणनीति” बनाने में जुटे हैं।
इन सबके बीच भाजपा और एनडीए लगातार महागठबंधन पर निशाना साध रहे हैं। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने इसे “ठगबंधन” बताते हुए कहा कि “जो अपने घर में एकजुट नहीं, वो बिहार को क्या दिशा देंगे?”
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि महागठबंधन ने जल्द ही इस अंदरूनी संकट को नहीं संभाला, तो इसका सीधा असर आगामी चुनावी नतीजों पर पड़ेगा।
राजद के लिए चुनौती दोहरी है — बाहर से कांग्रेस और अंदर से अपने ही असंतुष्ट नेता।
महागठबंधन की मौजूदा स्थिति यह दर्शाती है कि बिहार की राजनीति में “एकजुट विपक्ष” का सपना फिलहाल अधूरा है। सीटों का समीकरण, टिकट की सियासत और पुराने-नए चेहरों के बीच संतुलन बनाना ही अब तेजस्वी यादव की सबसे बड़ी परीक्षा है।
