गरखा (सुरक्षित) विधानसभा सीट से राजद के विधायक सुरेंद्र राम एक बार फिर चुनावी रण में हैं। पिछली बार पहली बार विधायक बने सुरेंद्र राम ने महागठबंधन की सरकार में लेबर मिनिस्टर (श्रम मंत्री) के रूप में भी जिम्मेदारी संभाली थी। इस बार भी पार्टी ने उन पर भरोसा जताते हुए टिकट दिया है, लेकिन मुकाबला आसान नहीं दिख रहा। उनके सामने चिराग पासवान के रिश्तेदार मैदान में हैं, जो बाहरी उम्मीदवार माने जा रहे हैं और तेजी से प्रचार में जुटे हैं।
सुरेंद्र राम अपनी सादगी और सरल स्वभाव के लिए जाने जाते हैं। गांव-गांव घूमते हुए वे आम मतदाताओं से सीधे संवाद कर रहे हैं। चप्पल, साधारण कुर्ता-पायजामा और साइकिल या जीप से गांवों का दौरा करते हुए उनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। समर्थक उन्हें "जमीन से जुड़े नेता" बताते हैं, तो विरोधी कहते हैं—"यह सब दिखावा है, असली तस्वीर तो सत्ता में रहते हुए दिखी थी।"
दरअसल, मंत्री रहते हुए सुरेंद्र राम का नाम उस वक्त सुर्खियों में आया था जब गर्दनीबाग स्थित सरकारी आवास पर नोट गिनने की मशीन मिलने की खबर सामने आई थी। यह मामला काफी चर्चित रहा। विपक्ष ने उस पर सवाल उठाए और कहा कि “श्रम विभाग में ट्रांसफर-पोस्टिंग के नाम पर जमकर खेल हुआ।” हालांकि सुरेंद्र राम ने उस वक्त खुद को निर्दोष बताया और कहा था कि “राजनीतिक साजिश के तहत मेरी छवि खराब करने की कोशिश हो रही है।”
इस बार के चुनाव में सबसे दिलचस्प बात यह है कि जनता पहले से ज्यादा जागरूक हो चुकी है। हर सभा, हर प्रचार यात्रा में लोग अपने मोबाइल कैमरे से वीडियो बना रहे हैं। कोई नेता अब जनता की नजर से बच नहीं पा रहा। सुरेंद्र राम भी जहां-जहां जा रहे हैं, वहां जनता उनकी हर गतिविधि को कैमरे में कैद कर रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि गरखा की इस बार की लड़ाई सिर्फ दलों के बीच नहीं, बल्कि विश्वसनीयता बनाम छवि की जंग बन गई है।
सुरेंद्र राम के लिए चुनौती यह है कि वे अपने मंत्रीकाल से जुड़ी पुरानी छवियों को पीछे छोड़कर जनता का विश्वास फिर से जीत पाएं या नहीं।
निष्कर्ष: गरखा में चुनावी माहौल गर्म है, और जनता अब सिर्फ भाषण नहीं, नेताओं के कर्म और चरित्र दोनों का मूल्यांकन कर रही है। सुरेंद्र राम के लिए यह चुनाव सादगी और साख—दोनों की परीक्षा है।
