पातेपर | बिहार विधानसभा चुनाव का समय नजदीक आ चुका है, और संभावित प्रत्याशियों की चर्चाएं तेज़ हो गई हैं। पातेपुर विधानसभा सीट, जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, हमेशा से एक दिलचस्प चुनावी क्षेत्र रहा है। इस सीट का चुनावी इतिहास अनूठा रहा है—आज तक कोई भी विधायक लगातार दो बार इस सीट से नहीं जीत पाया है। इस बार भी यही सवाल उठ रहा है कि क्या यह परंपरा जारी रहेगी या कोई प्रत्याशी इस मिथक को तोड़ने में सफल होगा?
पातेपुर का रोचक चुनावी इतिहास
आजादी के बाद 1952 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में नथुनी लाल मेहता (सोशलिस्ट पार्टी) ने छेदी लाल राय को 350 वोटों से हराकर जीत दर्ज की थी। इसके बाद 1957 में कांग्रेस के मो. एजाज, 1962 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी, और 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के पलटन राम विधायक बने।
1970 के दशक में वामपंथी राजनीति का प्रभाव बढ़ा, और 1969 में कम्युनिस्ट पार्टी के रीझन राम ने जीत हासिल की। 1980 में शिवनंदन पासवान (लोकदल) और फिर 1985 में बालेश्वर सिंह पासवान (कांग्रेस) ने बाज़ी मारी।
1989 में पूर्व मुख्यमंत्री रामसुंदर दास ने पातेपुर से जीत दर्ज की, लेकिन उनके इस्तीफे के बाद पुनः चुनाव हुआ, जिसमें जनता दल के लक्ष्मण महतो विधायक बने। 1995 में जनता दल के महेंद्र बैठा ने पहली बार जीत दर्ज की और 2000 में राजद से प्रेमा चौधरी ने उन्हें हराकर पातेपुर की पहली महिला विधायक बनने का गौरव प्राप्त किया।
इसके बाद परिसीमन के कारण विधानसभा क्षेत्र में बदलाव हुए। 2005 में फरवरी और नवंबर में हुए दो चुनावों में महेंद्र बैठा और प्रेमा चौधरी ने एक-दूसरे को हराया। 2010 में महेंद्र बैठा ने वापसी की, लेकिन 2015 में फिर से प्रेमा चौधरी ने बाज़ी मार ली।
2020 का चुनाव और नया समीकरण
2020 में राजद ने प्रेमा चौधरी का टिकट काटकर पूर्व मंत्री शिवचंद्र राम को मैदान में उतारा। इससे भाजपा को फायदा मिला, और लखेन्द्र कुमार रौशन उर्फ लखेन्द्र पासवान ने शिवचंद्र राम को हराकर पहली बार विधायक बने।
अब बड़ा सवाल यह है कि क्या लखेन्द्र पासवान इस बार पातेपुर के इतिहास को बदलकर लगातार दूसरी बार विधायक बन पाएंगे, या फिर एक नई राजनीतिक धारा बहने वाली है?
आगामी चुनाव और संभावित उम्मीदवार
इस बार चुनावी मैदान में कई नए चेहरे और छोटे दलों के उम्मीदवार भी अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। जन अधिकार पार्टी से अनिल पासवान, जन सुराज पार्टी से अशोक रजक और अन्य कई निर्दलीय प्रत्याशी भी सक्रिय हैं। वहीं, राजद की ओर से प्रेमा चौधरी एक बार फिर सक्रिय हो चुकी हैं और पार्टी को मजबूत करने में लगी हैं।
क्या इस बार इतिहास बदलेगा?
पातेपुर के मतदाता अब तक किसी भी विधायक को लगातार दो बार मौका नहीं देते आए हैं। लेकिन क्या लखेन्द्र पासवान इस परंपरा को तोड़ पाएंगे, या फिर कोई नया चेहरा उभरकर सामने आएगा?
आने वाले चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या पातेपुर की राजनीति में कोई नया अध्याय जुड़ता है, या फिर यह सीट अपने पुराने चुनावी इतिहास को ही दोहराती है। इसका फैसला तो जनता ही करेगी!
