रितु जायसवाल फिर मैदान में — इस बार राजद से बगावत कर निर्दलीय मैदान में उतरीं

Prashant Prakash
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बिहार की राजनीति में संघर्ष, सेवा और संवेदना का नाम बन चुकीं रितु जायसवाल ने एक बार फिर चुनावी रणभूमि में कदम रख दिया है।
इस बार वे किसी पार्टी की प्रत्याशी नहीं, बल्कि जनता के भरोसे निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में परिहार विधानसभा क्षेत्र से मैदान में हैं।


🌾 सिंहवाहिनी से राष्ट्रीय पहचान तक का सफर

रितु जायसवाल ने अपने सामाजिक जीवन की शुरुआत सिंहवाहिनी पंचायत की मुखिया के रूप में की थी। एक समय जब अधिकांश लोग राजनीति को स्वार्थ और सत्ता से जोड़कर देखते थे, तब रितु ने अपने काम से दिखाया कि जनसेवा ही असली राजनीति है।
उन्होंने पंचायत में शिक्षा, स्वच्छता, सड़क और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में ऐसे कार्य किए कि उनका मॉडल पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया। उन्हें कई राष्ट्रीय मंचों पर सम्मानित भी किया गया।


🗳️ 2020 : जब उम्मीदें जगीं, पर किस्मत ने दगा दिया

2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में रितु जायसवाल को राजद का सिंबल नाटकीय परिस्थितियों में मिला था। उन्होंने परिहार से पूरी निष्ठा और मेहनत के साथ चुनाव लड़ा, लेकिन मामूली अंतर से हार का सामना करना पड़ा।
इस हार ने उन्हें तोड़ा नहीं, बल्कि और मजबूत बना दिया। चुनाव परिणाम के बाद भी वे जनता के बीच रहीं, समस्याओं को सुना और समाधान में जुटी रहीं।


🗳️ 2024 : लोकसभा चुनाव में एक और प्रयास

2024 के लोकसभा चुनाव में उन्हें शिवहर से आरजेडी प्रत्याशी बनाया गया। रितु जायसवाल ने यहां भी मजबूती से चुनाव लड़ा, लेकिन राजनीतिक समीकरण और संगठनात्मक चुनौतियों के चलते उन्हें सफलता नहीं मिली।
इसके बावजूद उन्होंने अपनी निष्ठा और ईमानदारी नहीं छोड़ी।


🔥 2025 : अब बगावत नहीं, आत्मविश्वास की नई उड़ान

लगातार दो चुनावों में हार और संगठनात्मक उपेक्षा के बाद रितु जायसवाल ने राजद से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया।
उनका कहना है —

"मुझे अब किसी पार्टी के सिंबल की जरूरत नहीं। मेरा सिंबल जनता का विश्वास है, मेरा दल परिहार की जनता है।"


उनके इस निर्णय ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है।
जहां एक ओर विरोधी उन्हें ‘बागी’ कह रहे हैं, वहीं समर्थक उन्हें “जनता की आवाज़” बता रहे हैं।


💬 जनता का रिश्ता, सबसे बड़ा बल

रितु जायसवाल आज भी अपने क्षेत्र में जनता के बीच उसी सहजता से जाती हैं जैसे पहले जाती थीं। गांव की गलियों में बच्चों के साथ बैठना, महिलाओं से संवाद करना और बुजुर्गों का आशीर्वाद लेना — यही उनकी असली पहचान है।
वे मानती हैं कि लोकतंत्र में असली ताकत जनता के पास है, और अगर जनता साथ है तो कोई भी सत्ता स्थायी नहीं।


🌟 नया चुनाव, नई उम्मीद

अब परिहार विधानसभा क्षेत्र में मुकाबला दिलचस्प हो गया है।
रितु जायसवाल की लोकप्रियता, उनके कार्य और साफ छवि उन्हें अन्य उम्मीदवारों से अलग पहचान देते हैं।
उनके समर्थक मानते हैं कि इस बार जनता उनका “त्याग और संघर्ष” देख चुकी है, इसलिए नतीजा पहले जैसा नहीं होगा।

रितु जायसवाल की यह पंक्ति उनके पूरे संघर्ष को बयान करती है —

"सत्ता नहीं, सेवा ही मेरी ताकत है। हार मानना मेरी फितरत नहीं, मैं जनता के लिए लड़ती रहूंगी।"


📍अब फैसला परिहार की जनता के हाथ में है।
क्या वे रितु जायसवाल को फिर एक मौका देंगी?
लोकतंत्र में यही सबसे सुंदर बात है — जनता ही असली मालिक है।

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